निश्चित ही
नन्हे हाथ चले होंगे
किसी सपाट कागज़ पर
उन्मुक्त कल्पनाओं ने
लिया होगा आकार
चित्र दर चित्र
बने होंगे कई चित्र
रंग दर रंग
भरे होंगे कई रंग
खोज में सर्वश्रेष्ठ चित्र की
बनते गए
कई चित्र,कई जीव,कई पेड़,कई मौसम
फिर बाल मन जब झुंझला उठा
तो भींच कर मुट्ठी में
सपाट कागज़ को बदल दिया
गोले में
और उछाला
भीतर की संपूर्ण उर्जा से
दूर
कि आज तक घूम रहा है
वह गोला
रंग इतने गाढ़े थे
कि
एक चित्र
छपता जा रहा
कई और चित्रों में
इस विविध संसार का श्रेय
उस बड़े को
नहीं पहुँच सका जो यह बताने
पेड़ होंगे एक तरह के
जीव होंगे एक तरह के
मिट्टी का रंग एक ही होगा
दिशा नदी की एक ही होगी............
निश्चित ही
नन्हे हाथ चले होंगे
किसी सपाट कागज़ पर
निश्चित ही
नन्हे हाथ चले होंगे
किसी सपाट कागज़ पर
शेफाली शर्मा